Sunday 30 August 2015

आज़ादी की फसल


प्रशांत दो-चार दिनों के लिए पटना में था, एक मित्र से मिलना था और फिर उसके साथ कहीं जाना था, सो तय हुआ की उसे एक ऐसी जगह, नियत समय पर रहना होगा जहां वो उसे आसानी से ढूंढ सकेगा.

चूँकि उसे चिरैयाटांड पुल के उस ओर से स्टेशन  की ओर आना था, इसलिए तय हुआ की प्रशांत  स्टेशन के बाहर उसका इंतज़ार करेगा.

प्रशांत  नियत समय से दो चार मिनट पहले ही स्टेशन पर आकर खड़ा हो गया.

दुर्गा पूजा का समय निकट ही था इस वजह से स्टेशन अस्त व्यस्त था. भीड़ समुद्री लहर की तरह आ जा रही थी. बहुत से लोग इधर उधर, जिधर भी, बैठे, सोये, खड़े थे बस एक छोटा सा गलियारा छोड़ दिया था, स्टेशन के अंदर जाने ओर बाहर निकलने के लिए. वैसे तो अंदर जाने के लिए और बाहर निकलने के लिए अलग दरवाज़े थे लेकिन, हम तो दोनों ही स्थिति में एक ही दरवाज़े का इस्तेमाल करते हैं, ऐसे में हमें काफी सुविधा महसूस होती है. और सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाने की जो परम्परा अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रही है वो भी टूटने से बच जाती है.

थोड़ी देर में एक अधेड़ आदमी जिसने एक बनियान और लुंगी पहन रखा था, तेज़ी से बाहर की तरफ भागता हुआ निकला, उसके पीछे एक ७-८ साल का बच्चा चीखता हुआ भाग रहा था. उसने प्रवेश द्वार के पास उस अधेड़ को धक्का दे कर गिरा भी दिया, लेकिन वो उठकर फिर भाग निकला, और बच्चा वहीँ बैठ कर जोर जोर से रोने लगा.

आस पास खड़े लोग, जो की अपनी घोर व्यस्तता के कारण वहाँ निठल्ले खड़े थे, ने उस लड़के को चारों ओर से घेर लिया, और एक साथ कई ने पूछा, “का हुआ रे बचवा?”

लेकिन ‘बचवा’ रोये ही जा रहा था, बड़ी मुश्किल से उसने बताया की वह प्लेटफोर्म पर दातुन बेचता है, और थोड़े - थोड़े पैसे बचा कर उसने ३००० रुपये जमा किये थे, घर ले जाने को, आज कल में ही जाने की सोच रहा था, लेकिन जब वो पैसे गिन रहा था, तब उस लुंगी बनियान वाले अधेड़ ने उसके हाथ से वो पैसे झपट लिए, और भाग निकला.

प्रशांत बहुत पछता रहा था , वो बहुत आसानी से उस चोर को पकड़ सकता था, या फिर धक्का दे कर गिरा सकता था, जैसा की बच्चे ने पहले किया भी था.

अपने अपराध बोध के कारण, प्रशांत ने उस बच्चे को १०० रुपये दिए. बच्चा पैसे नहीं ले रहा था,   " आप क्यूँ दे रहे हैं, आपने क्या किया है ?" 
"कुछ नहीं किया इसलिए दे रहा हूँ" मैंने कहा “ ये रख लो, मैं उस चोर को रोक सकता था”

बच्चा प्रशांत की ओर देख रहा था, इतने में उसे अपना मित्र दिख गया, और फिर वो उसके साथ निकल पड़ा.

इस घटना को बीते आज कई वर्ष हो गए लेकिन, आज भी प्रशांत भूल नहीं पाया है.

 

2 comments:

  1. ऐसे अनेक प्रशांत है हमें सौ रुपये देने की स्थिति के ऐहसास से पूर्व थोडा सजग बनना चाहिए ।

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  2. ऐसे अनेक प्रशांत है हमें सौ रुपये देने की स्थिति के ऐहसास से पूर्व थोडा सजग बनना चाहिए ।

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