Wednesday 7 March 2018

The Gift of the Magi - ज्ञानियों का उपहार Original Story O'Henry


एक डॉलर और सत्तासी सेंट्स. बस . और इनमे से भी साठ सेंट्स छोटे सिक्कों में थे. एक एक दो दो कर के बचाए हुए, किराना दुकान वाले से सब्जी वाले से लड़ झगड़ कर बचाए हुए, गालों को सुर्ख कर देने वाली मित्वयिता. डेल्ला ने पैसे एक दो तीन बार गिने पर हर बार ये एक डॉलर सत्तासी सेंट्स ही रहे.

..................... और कल क्रिसमस है.

अब करने के लिए कुछ नहीं है सिवाय उस टूटे फूटे दीवान पर बैठ कर चिल्लाने के. और डेल्ला ने यही किया.

...... एक आम इंसान का जीवन सिसकियों और मुस्कुराहटों का जोड़ है, जिसमे सिसकियों की ही बहुतायत है.

पर अब घर की मालकिन जो शनैः शनैः पहले (सिसकियों) के पड़ाव से दूसरे की और अग्रसर है, अपने घर को गौर से देखती है, आठ डॉलर दर हफ्ते किराए का घर. वैसे तो ये घर किसी गरीबखाने जैसा भी नहीं था, पर गरीबी की झलक हर इक चीज़ के पीछे से मिल ही जा रही थी.

देहलीज़ पर एक लैटर बॉक्स ( पत्र पेटी ) था जिसमे कोई चिट्ठी अन्दर नहीं डाली जा सकती थी, घंटी बजाने के लिए एक बटन था जिस से कोई जीवित इंसान घंटी को बजने के लिए प्रेरित नहीं कर पाता था. और एक चीज़ थी एक तख्ती जिस पर घर के मालिक का नाम लिखा था – श्री जेम्स डील्लिन्घम यंग.

नाम का “डील्लिन्घम” वाला हिस्सा पिछली एक खुशहाली के दौर में तेज़ हवाओं को प्यारा हो गया था. पर जब भी श्री जेम्स डील्लिन्घम यंग घर पहुँचते तो ऊपर से उन्हें “जिम” पुकारा जाता और फिर श्रीमती जेम्स डील्लिन्घम यंग का पुर जोश आलिंगन, श्रीमती जेम्स डील्लिन्घम यंग – अरे हाँ वही .... डेल्ला .

अब डेल्ला काफी रो चुकी थी, सामने खिड़की के पास खड़ी हो कर एक सफ़ेद स्याह बिल्ली को देख रही थी जो एक सफ़ेद स्याह दीवार पर चल रही थी जिसके पीछे का परीपेख्श भी सफ़ेद स्याह ही था.

और कल क्रिसमस, और उसके पास सिर्फ एक डॉलर सत्तासी सेंट्स, जिस से उसे जिम के लिए एक उपहार लेना होगा. महीनों से उसने एक एक दो दो कर के पैसे बचाए थे और परिणाम ........ एक डॉलर सत्तासी सेंट्स. बीस डॉलर की आमदनी में ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता है. खर्चे उसके अनुमान से ज्यादा ही रहे, जैसा की हमेशा ही होता है. कितनी तैय्यारी की जिम के लिए कुछ अच्छा सा उपहार लेना है, ऐसा कुछ जो उसके काबिल हो, जो जिम का हो सकने के सम्मान के काबिल हो.

अचानक वो तेज़ी से घूमी आँखों में एक नयी चमक और अपने पीछे बंधे हुए बाल खोले और अपनी पूरी लम्बाई तक गिरने दिया.

बताते चलें की “यंग” दंपत्ति के पास दो ऐसे धरोहर थे जिन पर उन्हें नाज़ था. एक जिम की सोने की घडी, जो इस से पहले उस के पिताजी की थी और उस से भी पहले उसके दादाजी की. और दूसरी धरोहर- डेल्ला के बाल. बाल ऐसे की जिसके सामने शीबा की रानी के सारे आभूषण फीके पड़ें. और यदि राजा सोलोमन भी जिम की घडी देखता तो ईर्ष्या से अपनी दाढ़ी खींचता.

अब डेल्ला के खूबसूरत बाल एक भूरे सुनहले जल प्रपात जैसे लगभग घुटनों तक, जैसे अपने आप में एक आवरण हों. फिर उसने बालों को वापस बाँध दिया, थोड़ी देर के लिए ठिठकी, इस दरमियान कालीन पर आंसू की दो एक बूँद टपक पड़ी.

उसने अपना भूरे रंग का कोट पहना साथ में भूरे रंग का हैट और तेज़ी से सीढियां उतरती सड़क पर ....

उसके कदम अपने आप एक जगह रुक गए... “ मैडम सोफ्फरोनी- बालों से निर्मित सब कुछ” सीढियां चढ़ती हुई डेल्ला ऊपर पहुंची हांफती हुई. मैडम – विशाल, बर्फ सी सफ़ेद, ठंडी, सोफ्फरोनी जैसी तो कुछ नहीं.

“ क्या आप मेरे बाल खरीदेंगी?” डेल्ला ने पूछा.

“ मैं बाल खरीदती हूँ” मैडम ने कहा, “ अपना हैट उतारो और देखने दो मुझे.”

भूरे बाल इठलाते हुए नीचे गिर आये.

“ बीस डॉलर” मैडम ने कहा.

“ लाओ जल्दी.”

अगले दो घंटे तो बस यूँ ही निकल गए. इस दूकान से उस दूकान जिम के लिए उपहार तलाशने में.

आखिर मिल ही गया.. जैसे जिम के लिए ही बनाया गया था ... घडी की चेन प्लैटिनम की ...एक नज़र में ही उसे लगा की ये जिम के लिए ही है. उसकी घडी के लिए उपयुक्त भी. ये थी भी उस की ही तरह शांत और मूल्यवान. उन्होंने डेल्ला से इस के इक्कीस डॉलर लिए, और वो बाकी बचे सत्तासी सेंट्स लिए वापस घर को चली. जिम की घडी पे ये चेन कितनी जंचेगी वो सोच रही थी, अभी वो चोरी चुपके समय देखता है, क्यूंकि चेन की जगह एक चमड़े की पट्टी है.

डेल्ला जब घर पहुंची तो उसकी मदहोशी धीरे धीरे घट चुकी थी और सच से सामना होने लगा था, अपने बालों को छिपाने की जहद में लग गयी.

“ अगर जिम ने मुझे मार नहीं डाला तो वो यही कहेगा की मैं किसी वाद्य वृन्द की गायिका जैसी दिखती हूँ” डेल्ला ने सोचा. “पर एक डॉलर सत्तासी सेंट्स से मैं करती भी क्या."

सात बजे तक कॉफ़ी तैयार हो चुकी थी और चॉप बनाने के लिए कडाही भी गर्म थी.

जिम वक़्त का पाबन्द था, डेल्ला दरवाज़े के पास आ कर बैठ गयी. फिर सीढ़ियों पर क़दमों की आहट हुई, थोड़ी देर के लिए डेल्ला का चेहरा सफेद पड गया. “ हे प्रभु ऐसा कुछ करें की मैं उसे अब भी खूबसूरत दिखूं.”

दरवाज़ा खुला जिम अन्दर आया और उसने दरवाज़ा वापस बंद कर दिया.

वो बहुत दुबला और गंभीर दिख रहा था. बेचारा बाईस की उम्र में गृहस्ती के बोझ तले दबा हुआ. उसका ओवर कोट बदले जाने की गुजारिश कर रहा था, और इतनी ठण्ड में हाथ बगैर दस्तानों के थे.

जिम अन्दर आया और आते ही रुक गया बेहिस्स... जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को देख कर हो जाता है. उसकी आँखें डेल्ला पर टिकी हुई थीं, और उनमे एक ऐसा भाव जो डेल्ला पढ़ नहीं पा रही थी, और इस वजह से मन में कुछ डर था. ये गुस्सा था, या आश्चर्य, या सदमा, नहीं इनमे से कुछ भी नहीं, ऐसा कुछ नहीं जिसके लिए वो तैयार बैठी थी, वो बस देखे जा रहा था, चेहरे पे एक विचित्र भाव लिए.

“ मेरे प्यारे जिम “, डेल्ला ने कहा “ ऐसे मत देखो मुझे. मैंने अपने बाल कटवा कर बेच डाले, क्योंकि मैं क्रिसमस पर तुम्हें उपहार दिए बिन रह नहीं सकती थी, बालों का क्या है फिर बढ़ जायेंगे, वैसे भी मेरे बाल तेज़ी से बढ़ते हैं, बोलो 'मेर्री क्रिसमस जिम', और देखो मैं तुम्हारे लिए क्या उपहार ले कर आई हूँ.”

“ बाल कटवा कर बेच दिए?” जिम ने पूछा मानो अब तक उसे यक़ीन नहीं हुआ था.

“ हाँ कटवा कर बेच भी दिए.” देल्ला ने कहा.

जिम कमरे में इधर उधर देख रहा था मानो उसकी नज़रें कुछ ढूंढ रही थी.

“ तो तुम कह रहे हो की तुम्हारे बाल अब नहीं रहे?” उसने एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया.

“ उसे ढूँढने की ज़रुरत नहीं, कहा न बिक गए, आज क्रिसमस की पूर्व संध्या है और वो तुम्हारे लिए ही गए हैं, मैं अपने सर के बालों को तो गिन सकती हूँ पर तुम्हारे लिए अपने प्यार को नहीं. क्या मैं तुम्हारे लिए चॉप बना दूं?” डेल्ला ने पूछा.

अब जिम की भी तन्द्रा टूटी, उसने अपनी पत्नी को बाहों में भर लिया.

(..... आठ डॉलर की आमदनी हो या दस लाख की इस से क्या फर्क पड़ता है, बाइबिल में जो “मैजाई” थे वो भी उपहार लाये थे, बहुमूल्य उपहार, पर वो आपस में लेने देने के लिए नहीं, प्रभु यीशु को उनके जन्म पर देने के लिए......)

जिम ने अपने ओवर कोट की जेब से एक पैकेट निकालते हुआ कहा. “ तुम मुझे समझ नहीं पा रही हो, बालों के होने या न होने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, एक नज़र इस पैकेट को खोल कर देख लो फिर तुम समझ जाओगे की मैं इतनी देर से मूर्खों सा व्यवहार क्यों कर रहा हूँ.”

पतले पतले सफ़ेद हाथों ने तेज़ी से रस्सी और कागज़ को नोच कर हटा दिया – और फिर एक चीख ख़ुशी की, फिर तुरंत आँसुओं में तब्दील हो गयी, जिसकी वजह से गृहस्वामी को अपनी सारी शक्ति लगानी पड़ी शांति बनाने में.

सामने कंघों का एक खूबसूरत सेट पड़ा था, वो सेट जो डेल्ला को कब से लुभा रहा था, ये जानते हुए भी की ये उस के नहीं हो सकते, और अब ये सामने पड़े हैं, लेकिन जिन बालों को इनकी ज़रुरत थी वो तो जा चुके थे.

पर फिर भी उसने उन कंघों को समेटा और कहा “ मेरे बाल बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं जिम!”

फिर जैसे अचानक याद आया वो तेज़ी से लपकी और अपने खुले हाथ में जिम का उपहार ले आई, कीमती धातु चमक रही थी.

“ अच्छी है न? पूरे शहर में ढूँढने के बाद ये मिली मुझे. अब तुम दिन में कई बार समय देखोगे, लाओ अपनी घडी मुझे दो देखूं इसके साथ कैसी दिखती है.” डेल्ला ने कहा.

“ डैल,” जिम ने कहा “ हम अपने उपहार फिलहाल हटा देते हैं वर्तमान में इस्तेमाल करने के लिए ये कुछ ज्यादा ही अच्छे हैं. मैंने अपनी घडी बेच कर ये कंघों का सेट खरीदा, चलो अब ये अच्छा रहेगा की तुम झटपट चॉप बनाओ.”

जो “मैजाई” थे जैसा की विदित है ज्ञानी थे, अत्यंत ज्ञानी, जो चरनी में जन्मे बच्चे के लिए उपहार लाये थे. इन्होने ने ही क्रिसमस में उपहार देने की रवायत डाली थी. अब ज्ञानी थे तो इनके उपहार भी ज्ञानियों जैसे ही थे, जो अदले बदले जा सकें. और यहाँ दो नादान बच्चे जिन्होंने अपनी नादानी में अपनी सबसे कीमती चीज़ें बलिदान कर दीं. पर एक आखिरी शब्द आज के युग के ज्ञानियों के लिए – जितने भी लोग उपहार देते हैं उन में ये दो सबसे ज्यादा ज्ञानी. जितने भी लोग उपहार लेते हैं उन में भी ये दो सबसे ज्यादा ज्ञानी, हर जगह सर्वश्रेष्ठ. क्योंकि यही हैं ....... “मैजाई”

 

 

 

Magi (pl), singular Magus, also called Wise Men, in Christian tradition, the noble pilgrims “from the East” who followed a miraculous guiding star to Bethlehem, where they paid homage to the infant Jesus as king of the Jews (Matthew 2:1–12). Christian theological tradition has always stressed that Gentiles as well as Jews came to worship Jesus—an event celebrated in the Eastern church at Christmas and in the West at Epiphany (January 6). Eastern tradition sets the number of Magi at 12, but Western tradition sets their number at three, probably based on the three gifts of “gold, frankincense, and myrrh” (Matthew 2:11) presented to the infant