Saturday 8 March 2014

DUSK by Saki- अनुवाद अश्विनी सिंह

 

लन्दन के हाइड पार्क के एक कोने में नोर्मन गोर्त्सबी बैठा हुआ था, सामने एक चौड़ी सड़क, शाम के साढ़े छः बज रहे थे, मार्च का महीना था, और सूर्यास्त हो चुका था.

अँधेरे को कम कर रहे थे सड़क के कुछ लैम्प –पोस्ट, और मद्धिम चांदनी. सड़क पर एक खालीपन था लेकिन पार्क के बेंचों के बीच कुछ हद तक चहल पहल थी जो की हलके अन्धकार में ही विलुप्त सी प्रतीत हो रही थी.

गोर्त्सबी को यह सब अच्छा लग रहा था, क्योंकि उसका मन भी फिलहाल सूर्यास्त जैसा ही था. उसके मुताबिक सूर्यास्त का समय हारे हुए लोगों का समय था. पुरुष और महिलायें जो लड़-लड़ कर हार चुके थे, जिन्होंने अपनी फूटी किस्मत और मृत आशाओं को यथा-सम्भव लोगों की निगाहों से छुपा कर रखा था.

 ये वोही लोग थे जो इस समय ही यहाँ आते थे, ताकि लोगों की नज़र इनके पुराने कपडे, इनके झुके हुए कंधे, और इनकी दुखी आँखों पर न पड़े. इंसानी दिल है ही ऐसी चीज़, एक हारे हुए राजा को लोग तिरस्कार से देखते ही हैं. इस बेला में चहल कदमी करने वालों को ऐसी नज़रों से देखा जाना पसंद नहीं था, यही वजह थी की वो इसी वक्त आते थे. हरियाली से परे, प्रकाश से चमकती हुई खिड़कियों की कतारें थी, ये उन लोगों के घर थे जो जिंदगी के साथ संघर्ष में लगे हुए थे और जिन्होंने अभी तक हार नहीं मानी थी. गोर्त्सबी भी अपने आप को उन हारे हुओं में ही गिनता था.

नहीं, उसे पैसों की कोई दिक्कत नहीं थी, बस जीवन के एक अलग उद्देश्य में असफल हो गया था. इस समय वो बहुत दुखी और निराश था, उसे पार्क में घूमते हुए उन हारे हुए लोगों को देख कर एक संतोष सा अनुभव हो रहा था. बेंच पर उसकी बगल में एक वृद्ध सज्जन बैठे हुए थे, उनके कपडे अच्छे तो नहीं कहे जा सकते थे, लेकिन मद्धिम प्रकाश में उन में कोई दोष भी नज़र नहीं आ रहा था, हालांकि ये कहा जा सकता था की वो ज्यादा संपन्न तो नहीं थे. एक ऐसा इंसान जो अकेले ही रोने को मजबूर हो. जब वो जाने के लिए उठे तो गोर्त्स्बी ने सोचा, की ये वापस घर जायेंगे जहां इन्हें कोई पूछता ही नहीं, या फिर अकेले रहते होंगे, जहां कमरे का किराया देना ही इनका एक मात्र काम होगा. धीरे -धीरे वो आँखों से ओझल हो गए.

लगभग फ़ौरन ही बेंच पर उनकी जगह एक युवक ने ले ली. उसके कपडे तो वृद्ध सज्जन से कहीं अच्छे थे, लेकिन, वो भी उनकी तरह ही उदास सा था, बैठते-बैठते उसके मुंह से कुछ अपशब्द से निकले, जिस से गोर्त्स्बी को यकीन हो गया की ये भी अपने हालात से खुश नहीं था.

“ तुम कुछ अच्छे मूड में नहीं लगते.” गोर्त्स्बी ने कहा.

युवक ने कुछ अजीब तरीके से गोर्त्स्बी को देखा......... “ अगर तुम्हारी भी स्थिति मेरे जैसी हो तो तुम भी अच्छे मूड में नहीं रहोगे.” उसने कहा “ मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता की है.”

“अच्छा?”............. गोर्त्स्बी ने कहा.

युवक ने कहा “ आज ही यहाँ आया, मुझे पैतागोनियन होटल में रुकना था, लेकिन यहाँ आ कर पता चला की उसे तोड़ कर उसकी जगह एक थिएटर बन गया है. खैर टैक्सी वाले ने मुझे एक और होटल का पता दिया और वहाँ पहुँचते ही मैंने अपने लोगों को एक पत्र लिखा, जिसमे नयी जगह का पता दिया था. फिर मैं साबुन की टिकिया खरीदने निकल गया, जल्दबाजी में साबुन की टिकिया रखना भूल गया था, और मुझे होटल का साबुन पसंद नहीं है. थोड़ी देर घूमने के बाद और थोड़ी सी शराब पीने के बाद मैं जब वापस जाने के लिए मुड़ा तो अछानक मुझे एहसास हुआ की मुझे तो होटल का नाम भी याद नहीं,न ही वो सड़क जिस पर ये होटल था. अच्छी मुसीबत है, एक ऐसे शख्स के लिए जिस का लन्दन में कोई दोस्त न हो. हाँ मैं अपने परिवार को टेलीग्राम भेज सकता हूँ, होटल के पते के लिए, लेकिन मेरा पत्र तो कल से पहले वहाँ पहुंचेगा ही नहीं. जितने पैसे होटल से ले कर निकला था वो तो साबुन की टिकिया और शराब में ही खत्म हो गए. अब मेरे पास कुछ नहीं है, और पता नहीं रात कैसे गुज़र होगी.”

थोड़ी देर एक संवादपूर्ण शान्ति रही, फिर उसने कहा “ तुम सोच रहे होगे की मैंने एक असंभव सी कहानी बना डाली.” उसकी आवाज़ में थोडा सा रोष था.

“ नहीं नहीं ऐसी कुछ बात नहीं है, मुझे याद है, मैंने भी कुछ ऐसा ही किया था, जब मैं किसी विदेशी राजधानी में था, और मजेदार बात तो ये की हम दो लोग थे, भाग्य से हमें इतना याद था की हमारा होटल एक नहर के किनारे था, बस हम नहर किनारे चलते गए और हमें रास्ता मिल गया.”

गोर्त्स्बी की बात सुनते ही युवक खुश हो गया....... “ विदेशी राजधानी की बात और है, वहाँ कोई दिक्कत हो तो आप अपने राजदूत के पास जा सकते हैं. लेकिन अपने देश में यदि ऐसा हो जाए तो फिर आपकी मदद भगवान ही कर सकते हैं. और अब यदि मुझे कोई दयालु इंसान उधार न दे तो मुझे रात नदी किनारे ही गुजारनी पड़ेगी.” “ पर फिर भी मुझे अच्छा लगा की आपने ये तो माना की मेरी कहानी सच हो सकती है.”

“ हाँ हाँ बिलकुल सही” गोर्त्स्बी ने कहा “ पर तुम्हारी कहानी की कमज़ोर कड़ी ये है की तुम्हारे पास दिखाने को कुछ नहीं है, न तो तुम पी हुई शराब दिखा सकते हो, न ही तुम साबुन की टिकिया ही दिखा सकते हो.”

युवक को जैसे झटका लगा, वो अपनी जेब टटोलने लगा, और उछल कर खड़ा हो गया. “ मैंने साबुन की टिकिया भी गुम कर दी.”

“तुम्हे नहीं लगता “ गोर्त्स्बी ने कहा “ की एक ही शाम होटल और साबुन की टिकिया दोनों गुम कर देना, कुछ ज्यादा नहीं है?”

पर युवक ये सब सुन ने के लिए नहीं रुका, सर ऊँचा किये हुए वो आगे निकल गया.

“अफ़सोस!” गोर्त्स्बी ने सोचा “ साबुन की टिकिया लेने निकलना, यही एक मात्र विश्वसनीय हिस्सा था उसकी कहानी का, लेकिन उस में इतनी दूर दर्शिता नहीं थी की वो एक साबुन की टिकिया अपने पास रख लेता. और ऐसे काम में तो दूर दर्शिता सावधानी बरतने में ही है.” सोचते हुए गोर्त्स्बी भी चलने के लिए उठा, लेकिन तभी उसकी नज़र नीचे पड़ी किसी चीज़ पर गयी, बेंच के पास कागज में लिपटी एक अंडाकार वस्तु थी, और ये साबुन की टिकिया के अतिरिक्त और क्या हो सकती थी.

 बेंच पर बैठते वक्त ज़रूर उस युवक के कोट से ये टिकिया गिर गयी होगी. गोर्त्स्बी का मन ग्लानि से भर गया, वो तेज़ी से उस युवक की दिशा में चल पड़ा. अँधेरा बढ़ गया था और गोर्त्स्बी निराश हो चुका था तभी उसने उस युवक को एक सड़क के किनारे देखा, ऐसा लग रहा था की वो ये सोच नहीं पा रहा था की बाएं जाए या दायें. जब गोर्त्स्बी ने उसे पुकारा तो वो लगभग आक्रामक सा हो कर उसकी और मुड़ा.

“ तुम्हारी कहानी का एक अहम गवाह मिल गया है” गोर्त्स्बी ने कहा, और साबुन की टिकिया उसकी और बढ़ा दी “ शायद ये तुम्हारी कोट की जेब से गिर गयी थी. मेरे व्यवहार के लिए मुझे माफ कर दो, पर तुम्हारे पक्ष में कुछ भी नहीं था. तुम ये एक गिन्नी ले लो और इस सप्ताह जब चाहे मुझे लौटा देना”

युवक ने झटपट गिन्नी अपनी जेब में रख ली.

“ ये लो मेरा कार्ड” गोर्त्स्बी ने कहा “ और हाँ साबुन की टिकिया को अब गुम नहीं करना, ये तुम्हारी अच्छी दोस्त साबित हुई.” शुक्रिया अदा करते हुए वो युवक विदा हुआ. “ बेचारा! सचमुच किस मसीबत में था.” गोर्त्स्बी ने सोचा “ और मेरे लिए भी एक सबक है, अपने आप को ज्यादा होशिआर न समझूं.” गोर्त्स्बी फिर से पार्क की उसी बेंच की तरफ चल दिया, उसने देखा की युवक से पहले जो वृद्ध सज्जन उस बेंच पर बैठे थे, वो बेंच के नीचे कुछ ढूंढ रहे थे.

“ क्या आपका कुछ गुम हो गया है?” गोर्त्स्बी ने पूछा.

“ जी हाँ श्रीमान” वृद्ध सज्जन ने कहा “ एक साबुन की टिकिया.”

 

DUSK by “SAKI” ( H H Munro) Translated in Hindi by Ashwini Singh.

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